देवाल (चमोली)। हिमालय की अधिष्ठात्री देवी मां नंदा की वार्षिक लोकजात गुरूवार को अपने अंतिम पडाव में पहुंच गयी है। नंदा राजराजेश्वरी की डोली वाण गांव से आगे निर्जन पडाव गैरोली, बंड नंदा की डोली निर्जन पडाव पंचगंगा पहुंच गयी है। शुक्रवार को नंदा सप्तमी के दिन बीते एक पखवाडे से चली आ रही मां नंदा की वार्षिक लोकजात यात्रा संपन्न हो जायेगी। सिद्धपीठ कुरूड से कैलाश के लिए नौ सितम्बर को चली नंदा देवी लोकजात यात्रा का नंदा सप्तमी को वेदनीकुंड में विधिवत समापन होगा। इस धार्मिक अनुष्ठान में शामिल होने के लिए सैकड़ों भक्त वेदनी बुग्याल पहुंच चुके हैं। बुग्याल की नैसर्गिक सौंदर्य का लुप्त उठा रहे। श्रद्धालुओं से वेदनी और आली बुग्याल गुलजार हो रखा है।
वेदनी कुंड में करते हैं पिंडदान
नंदा देवी के पंडित उमेश चन्द्र कुनियाल का कहना है कि जो भी यात्री इस यात्रा में शामिल होता है अपने पितरों का श्राद्ध और पिंडदान कुंड में करता है। पिंड दान करने से पितरों का बैकुंठ हो जाता है। लाटू देवता के पूजारी खीम सिंह नेगी कहते हैं कि लोकजात यात्रा का अगुवा लाटू देवता होता है। लाटू को मां नंदा का धर्म भाई माना जाता है। इस लिए लाटू देवता यात्रा का पथप्रदर्शक होता है।
वेदनी कुंड से मां नंदा को कैलाश शिवधाम को विदा करने की है परम्परा
वेदनी कुंड में पूजा अर्चना के बाद मां नंदा को कैलाश के लिए विदा किया जाएगा। तथा यहीं पर नंदा लोकजात का समापन हो जाता है। नंदा देवी के पुजारी कालीका प्रसाद गौण और नरेश बताते हैं कि यात्रा संपन्न होने के बाद नंदा की उत्सव डोली छह माह कुरूड अपने मायका और छह माह अपने ननिहाल देवराडा में प्रवास करने की परम्परा चली आ रही है। अब नंदा की उत्सव डोली छह माह के लिए देवराड़ा में अपने ननिहाल में प्रवास करेगी। लोकजात का समापन 22 सितम्बर को होगा।