Thursday, May 9, 2024
Homeराष्ट्रीयजंगलों में आग की घटनाएं : भारत की अध्यक्षता में जी-20 के माध्यम...

जंगलों में आग की घटनाएं : भारत की अध्यक्षता में जी-20 के माध्यम से प्रत्युत्तर की तैयारी

@डॉ. के. रविचंद्रन, निदेशक, आईआईएफएम

नई दिल्ली : पिछले कुछ दशकों में जंगलों में आग लगने की घटनाओं में काफी तेजी आई है। इन घटनाओं से कनाडा के बोरियल जंगलों और ब्राजील के अमेजोन के वर्षा वनों जैसे महत्वपूर्ण वैश्विक कार्बन सिंक क्षेत्रों को अत्यधिक नुकसान हुआ है। मार्लीलैंड विश्वविद्यालय के एक नए अध्ययन में पाया गया कि जंगलों में आग लगने की घटनाओं के कारण अब 2001 की तुलना में, प्रति वर्ष 3 मिलियन हेक्टेयर अधिक वृक्षों को नुकसान हो रहा है, जो पिछले 20 वर्षों में सभी वृक्षों के नुकसान की तुलना में एक-चौथाई से अधिक है। आग की घटनाओं की पुनरावृत्ति, तीव्रता और भौगोलिक प्रसार में इस खतरनाक वृद्धि ने पारिस्थितिक तंत्र पर प्रभाव और मानव गतिविधियों की क्षमता के बारे में चिंताओं को जन्म दिया है।

जलवायु परिवर्तन के कारण आग की घटनाओं में वृद्धि हुई है। 150 साल पहले की तुलना में गर्म हवाओं (हीट वेव) की तीव्रता पांच गुना अधिक हो गई हैं। इस प्रकार भूसंरचना का निर्जलीकरण होने से जंगलों में आग लगने की और भी अधिक घटनाओं के लिए अनुकूल वातावरण तैयार होता है। इसके परिणामस्वरूप उत्सर्जन में वृद्धि होती है और जलवायु परिवर्तन का प्रभाव तेज होता है। जलवायु परिवर्तन के कारण भूसंरचना का निर्जलीकरण भी वनों की कटाई में योगदान देता है।

भारत की स्थिति  

भारत ने अपने क्षेत्र के जंगलों में आग लगने की घटनाओं को लेकर निगरानी प्रणालियों का विस्तार करके विश्व भर में जंगलों में आगजनी के बढ़ते मामलों की रोकथाम की दिशा में पहल की है। भारत के 25 प्रतिशत जंगल आग के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं, लेकिन केवल 3 प्रतिशत वृक्ष आवरण का नुकसान जंगल की आग के कारण होता है। भारतीय वन सर्वेक्षण ने आगजनी की बड़ी घटनाओं की तत्काल एवं निरंतर निगरानी और ट्रैकिंग के लिए जंगल की आग से संबंधित डेटा को उपयोगकर्ता के अनुकूल इंटरैक्टिव दृश्य प्रदान करने के लिए वन अग्नि जियो-पोर्टल विकसित किया है। यह पोर्टल भारत में जंगल की आग से संबंधित जानकारी के लिए एकल बिंदु स्रोत के रूप में काम करेगा। जंगल की आग का प्रबंधन जल्द ही राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के दायरे में होगा, जिससे जंगल की आग का प्रभावी तौर पर तत्काल प्रबंधन सुनिश्चित हो सकेगा।

अधिकारियों की ओर से तकनीकी और नियामक उन्नयन के अलावा जंगल की आग  की प्रबंधन रणनीति को प्रभावी ढंग से सुधारने के लिए सामूहिक कार्रवाई के उपायों को अपनाया जा रहा है। संयुक्त वन प्रबंधन (जेएफएम) का उपयोग जंगल की आग की रोकथाम और प्रबंधन में स्थानीय समुदायों को शामिल करने के लिए किया गया है। सुरक्षा और संरक्षण को लेकर गतिविधियों के विस्तार के लिए देश भर में ग्रामीण स्तर पर जेएफएम समितियां स्थापित की गई हैं। वर्तमान में पूरे देश में 36,165 जेएफएम समितियां हैं, जो 10.24 मिलियन हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र को कवर करती हैं।

कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ जिले सहित भारत के विभिन्न क्षेत्रों में समुदाय-आधारित अग्नि प्रबंधन से जुड़ी कार्य प्रणालियां लोकप्रियता हासिल कर रही हैं। इन कार्य प्रणालियों में जागरूकता कार्यक्रमों, नुक्कड़ नाटकों, घर-घर अभियान, अग्नि नियंत्रण कक्ष और वॉच टावरों के माध्यम से सामुदायिक भागीदारी और क्षमता निर्माण शामिल है। वन विभाग ने एक वर्ष के भीतर अलर्ट में 5 प्रतिशत से अधिक की कमी का अनुभव किया गया, और जंगल की आग से जले हुए क्षेत्र में 58 प्रतिशत से अधिक की कमी आई है। बांदीपुर टाइगर रिजर्व में, जंगल की आग से प्रभावित क्षेत्रों के पुनरुद्धार संबंधी कार्य को अच्छी तरह से प्रबंधित किया गया है। जिसमें घटिया स्तर का वृक्षारोपण को हटाने की कार्य प्रणालियों को मिट्टी द्वारा सुरक्षित करना और वृक्षारोपण प्रजातियों और वयस्क पेड़ों की कुशल बंडलिंग शामिल है। इससे 12-18 महीनों के भीतर जैव विविधता के घनत्व में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

भारत मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों और मौसमी घटनाओं को देखते हुए जंगल की आग के प्रबंधन से निपटने की तैयारी कर रहा है। भारत के पारंपरिक जंगल की आग पर नियंत्रण और इसकी प्रभावशीलता का सम्मान करते हुए, भारत लगातार अपनी पारंपरिक विशेषज्ञता को बढ़ावा दे रहा है और अनेक उपायों को अपना रहा है। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप जंगल की आग की घटनाओं और उनसे होने वाले नुकसान में कमी आई है। भारत जंगल की आग पर जल्द से जल्द प्रत्युत्तर देने के लिए स्थानीय समुदाय की ताकत पर भरोसा करते हुए समुदाय-आधारित जंगल की आग के प्रबंधन को प्रोत्साहित करता है। साथ ही, निवारक कार्रवाई और आग  की घटनाओं के बाद प्रबंधन संबंधी निर्णय लेने में फील्ड प्रबंधकों की सहायता के लिए आधुनिक तकनीक, जैसे अग्नि चेतावनी प्रणाली, जीपीएस ट्रैक द्वारा वन अग्नि के प्रबंधन और पुनरुद्धार आदि को शामिल किया जा रहा है, ताकि आग की घटनाओं और उनसे होने वाले नुकसान को कम किया जा सके। 

जी-20 का महत्व

जलवायु परिवर्तन पर जंगल की आग के प्रभाव के बढ़ते खतरे को ध्यान में रखते हुए, इस वर्ष जी-20 शिखर सम्मेलन में भारत की अध्यक्षता ने जी-20 वैश्विक भूमि पहल को मजबूत करने के लिए ‘गांधीनगर कार्यान्वयन रोडमैप (जीआईआर) और गांधीनगर सूचना मंच (जीआईपी)’ लॉन्च किया। रोडमैप का उद्देश्य वन अग्नि प्रभावित क्षेत्रों और खनन प्रभावित क्षेत्रों की इकोसिस्टम के पुनरुद्धार संबंधी कार्य में तेजी लाने के लिए भागीदार देशों के बीच आपसी सहयोग को बढ़ाना है।

यह जी-20 की भारत की अध्यक्षता द्वारा शुरू किया गया एक अनूठा प्रयास है। जी-20 सदस्यों की एक सहज समझ है कि जलवायु संकट को हल करने के लिए पूरे विश्व में बड़े पैमाने पर सामूहिक कार्रवाई के प्रयास करने होंगे और यथासंभव परिवर्तन को एक संभावना बनाने के लिए वैश्विक परिदृश्य में प्रभावी ढंग से साझा करना होगा। जीआईपी-जीआईआर पहल की अनिवार्य प्रकृति यह है कि यह रणनीतिक रूप से सामुदायिक भागीदारी और स्वदेशी ज्ञान साझाकरण और तकनीकों के साथ स्थायी वानिकी से संबंधित कार्य प्रणालियों के सक्रिय कार्यान्वयन पर ध्यान देगी। इससे न केवल विभिन्न देशों के बीच स्थिरता आधारित सहकारी संबंधों को मजबूत करने में मदद मिलेगी, बल्कि ज्ञान के महत्वपूर्ण प्रवाह को बेहतर बनाने में भी मदद मिलेगी। इससे पुनरुद्धार से जुड़े क्रियाकलापों के विस्तार में भी मदद मिलेगी।

लेखक : डॉ. के. रविचंद्रन, निदेशक, आईआईएफएम

RELATED ARTICLES
- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments