चमोली : उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। देवभूमि में कई ऐसे मंदिर और धार्मिक स्थल हैं, जिनकी अपनी-अपनी विशेष मान्यताएं हैं। अपना-अपना महत्व है। कई ऐसे मंदिर भी हैं, जिनके बारे में अनोखी बातें भी सुनने और देखने को मिलती हैं। ऐसी मान्यताएं, जिनके बारे में आपने भी शासद ही कभी सुना और देखा होगा। ऐसा ही एक मंदिर श्री वंशी नारायण। मान्यता है कि मंदिर साल में सिर्फ एक बार रक्षाबंधन के दिन ही खुलता है।
ऐसे पहुंचें मंदिर
वंशी नारायण मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित एकल संरचना का 8वीं शताब्दी का मंदिर है। मंदिर उरगाम गांव के अंतिम गांव बंसा से 10 किमी आगे स्थित है। इसलिए, मंदिर के आसपास कोई गांव भी नहीं है। चमोली जिले के उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित वंशीनारायण मंदिर उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले की उर्गम घाटी में कल्पेश्वर महादेव मंदिर से लगभग 12 किलोमीटर और देवग्राम से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर समुद्र तल से लगभग 13 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
6 से 8 वीं शताब्दी के आसपास बना होगा
यह मंदिर हिमालय पर्वत पर स्थित नंदा देवी पर्वत श्रृंखलाओं और जंगलों से घिरा है। इस मंदिर तक पहुँचने के लिए घने ओक के जंगलों के बीच से होकर जाया जाता है। यह मंदिर भगवान श्री हरी को समर्पित है । ऐसा माना जाता है की यह मंदिर लगभग 6 से 8 वीं शताब्दी के आसपास बना होगा। वंशी नारायण मंदिर जाने के लिए उरगाम (लगभग 1500 मीटर) से बंसी (लगभग 3200 मीटर) तक का सीधा रास्ता है। इसके अलावा कलगोट (लगभग 2400 मीटर) से आसान रास्ता है।
सूर्याेदय से लेकर सूर्यास्त खुलते हैं कपाट
कहा जाता है कि रक्षाबंधन के दिन सूर्याेदय से लेकर सूर्यास्त तक इस मंदिर के कपाट खुलते हैं। इसके बाद अगले एक साल के लिए फिर से मंदिर बंद हो जाता है। रक्षाबंधन के दिन मंदिर खुलते ही कुंवारी कन्याएं और विवाहित महिलाएं भगवान वंशी नारायण को राखी बांधती हैं।
पौराणिक कथा
वंशी नारायण मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार राजा बलि के अहंकार को नष्ट करने के लिए भगवान विष्णु ने वामन का रूप धारण किया था और बलि के अहंकार को नष्ट करके पाताल लोक भेज दिया। जब राजा बलि का अहंकार नष्ट हो गया, तब उसने भगवान नारायण से प्रार्थना की थी कि वह भी मेरे सामने ही रहे। ऐसे में श्री हरि विष्णु पाताल लोक में बलि के द्वारपाल बन गए थे।
पाताल लोक से धरती पर प्रकट हुए
लंबे समय तक जब भगवान विष्णु वापस नहीं लौटे तो माता लक्ष्मी भी पाताल लोक आ गई और बलि की कलाई पर राखी बांधी और प्रार्थना की कि वह भगवान विष्णु को पाताल लोक से जाने दें। इसके बाद राजा बलि ने बहन लक्ष्मी की बात मानकर भगवान को वचन से मुक्त कर दिया। माना जाता है कि इसी स्थान पर भगवान विष्णु पाताल लोक से धरती पर प्रकट हुए थे। तब से रक्षाबंधन के दिन इस जगह को वंशी नारायण के रूप में पूजा जाने लगा।