कोटद्वार में अवैध अतिक्रमण पर कई अधिकारी आंखे मूंदे बैठे है, आलम ये है कि नगर में नदी नालों, सड़को और नहरों पर अतिक्रमण होने को लेकर कोई ठोस कार्यवाही नहीं की जा रही है। हैरानी की बात तो ये है कि खुद विधानसभा अध्यक्ष को अवैध अतिक्रमण के खिलाफ आवाज उठानी पड़ रही है। और स्थिति ये है कि नगर में कई जगह अन्य पार्टी के नेताओं के भी अतिक्रमण होने के कारण इस मामले में उनके द्वारा भी विरोध नहीं किया गया। कोटद्वार नगर में नेशनल हाइवे पर कुछ समय पूर्व पक्का अतिक्रमण तोड़ते समय हुए भेदभाव पर सभी राजनैतिक दल चुप थे। दिल्ली में बेसमेंट में संचालित इंस्टीट्यूट के बच्चों की मौत के बाद कोटद्वार में भी बेसमेंट में स्टोर, गोदाम और पार्किंग के अलावा मानवीय गतिविधि अर्थात दुकान, होटल, इंस्टीट्यूट, जिम आदि के संचालन पर ठोस कार्यवाही न होने पर सभी पार्टियों के नेता चुप थे क्योंकि नगर में इस तरह बेसमेंट में संचालित कॉम्प्लेक्स कई अन्य नेताओं के भी है। विपक्ष द्वारा जसोधरपुर के पास शराब का ठेका खुलने का विरोध किया गया, लेकिन गढ़वाल के प्रवेश द्वार कौड़ियां पर खुले शराब के ठेके का कोई विरोध विपक्ष ने नहीं किया। गोखले मार्ग और अन्य स्थानों के अतिक्रमण पर विपक्ष की खामोशी से साफ दिखता है कि नगर की व्यवस्था सुधारने को लेकर वो कितने चिंतित है। अवैध खनन के विरोध में भी अब तक किसी राजनैतिक दल द्वारा बड़े स्तर पर कोई विरोध, धरना या प्रदर्शन नहीं किया जा रहा। ऐसे में कोटद्वार में ये साफ दिखता है कि हर पार्टी का नेता अपना हिसाब किताब जोड़कर विरोध करता है न कि जनता की दुख तकलीफों को देखकर। और यही कारण है कि खुद को जनता का शुभचिंतक बताने वाली पार्टियां कोटद्वार से गायब हो रही है, टुकड़ों में बटकर बिखरती जा रही है।