कोटद्वार में अधिकारियों और भू माफियाओं की मिलीभगत के चलते अब ये शहर घोटालों का शहर बन चुका है। आपको बता दें की उत्तराखंड सूचना आयोग के निर्देशों पर फुटपाथ पर अतिक्रमण चिन्हित किए गए थे, और माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल ने उक्त अतिक्रमण को हटाने के आदेश भी दिए थे। मगर हाई कोर्ट के आदेश के बाद भी फुटपाथ से अतिक्रमण हटाने के बजाय निगम के अधिकारियों द्वारा बहाना करते हुए यह ये कहा गया था कि इसमें से कुछ लोगों के पट्टों को फ्री होल्ड करते समय उक्त फुटपाथ को भी फ्री होल्ड कर दिया गया है। ऐसे में उनको कैसे हटाया जाएगा? जिस पर सामाजिक कार्यकर्ता मुजीब नैथानी की शिकायत पर एक कमेटी का गठन वर्ष 2020 में किया गया और उक्त फुटपाथों पर अतिक्रमण की पुनः जांच की गई। जिसमें जांच अधिकारियों के द्वारा उल्लेखित किया गया कि नजूल नीति में स्पष्ट है कि किसी भी सार्वजनिक स्थल की भूमि, नाली, फुटपाथ आदि को फ्री होल्ड नहीं किया जाएगा और अतिक्रमण को हटाया जाएगा। उक्त जांच में अधिकारियों द्वारा यह लिख दिया गया कि उक्त फ्री होल्ड “फ्रीहोल्ड नीति” के अनुरूप ही फ्री होल्ड किए गए हैं।जिस पर शासन ने जिलाधिकारी गढ़वाल से भेजी गई जांच आख्या में यह स्पष्टीकरण करना चाहा कि पट्टे से अतिरिक्त जो भूमि फ्री होल्ड की गई है क्या वह सार्वजनिक स्थल की भूमि है या नहीं, यह स्पष्ट करें ।
इस मामले में निगम के अधिकारियों के साथ साथ शासन के अधिकारियों की भूमिका भी संदिग्ध नजर आ रही है क्योंकि पूर्व में ही निगम के अधिकारी लिख चुके हैं कि फुटपाथ की भूमि को फ्री होल्ड कर दिया गया है इसी वजह से माननीय हाई कोर्ट के आदेश पर भी अतिक्रमण नहीं हटाया गया है।
ऐसे में जब स्पष्ट है कि फ्री होल्ड की गई भूमि फुटपाथ है, जो कि सार्वजनिक उपयोग की भूमि है और लिपिक द्वारा टाइप करते वक्त गलती से लिख दिया गया कि फ्री होल्ड नीति के अनुरूप ही फ्री होल्ड किया गया है, उसके बावजूद मामले को लटकाने के लिए फिर से कमेटी बना दी गई है। इस तरह यह मामला 2 साल से लटका हुआ है। जबकि मुजीब नैथानी का कहना है कि उक्त मामले में अतिक्रमणकारियों एवम निगम के अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज होना चाहिए जिन्होंने सार्वजनिक उपयोग की भूमि को फ्री होल्ड करने की संस्तुति दी है। साथ ही मुजीब नैथानी ने आरोप लगाया कि नगर निगम आयुक्त पट्टे वालों से भी फुटपाथ खाली नहीं करवा पा रहे हैं।