कल शाम त्यूनी से बगूर के लिए जा रही एक जीप दुर्घटना ग्रस्त हो गयी जिसमे 4 लोग हताहत हो गये। बताया जा रहा है कि इसमे 24 लोग सवार थे। त्यूनी क्या पूरे जौनसार बावर मे ऐसी गाड़ियां धडल्ले से छत भर कर सवारियां लादे गाँव गाँव को दौड़ती फिरती है। त्यूनी मे अब थाना खुल चुका है , प्रदेश में भाजपा की सरकार भी आ चुकी है लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात है। इस क्षेत्र में ब्यालिस दिनों के अंदर यह तीसरी बड़ी दुर्घटना है। 19 अप्रैल को विकास नगर से त्यूनी को चली एक जर्जर बस हिमाचल के गुम्मा के नजदीक दुर्घटनाग्रस्त हो गयी जिसमे सवार सभी 47 यात्री मारे गये।
जौनसार बावर के लोग बहुत आस्थावान है। बुनियादी सुविधाओं और अधिकारों पर गौर करने की बजाय यहां का एक बडा तबका आस्था में लीन रहता है। इसलिए इस तबके की आस्थाओं पर चोट करना जरूरी हो गया है। बुनियादी सुविधाओं के बरक्स जय जयकार पर जोर देने वाली क्षेत्र की नयी पीढी को इसी बहाने झकझोरा जा सकता है ताकी वो जरूरी मुद्दों को भगवान भरोसे छोड़ने की बजाय अपने बुनियादी अधिकारों के लिए व्यवस्था से संवाद करे। स्कूल सड़के, स्वास्थ, कानून और न्याय की जानकारी रखें और उसके लिए के लिए बात उठाएं, संघर्ष करें। मुझे किसी की आस्था से कोई परेशानी नही है लेकिन इस आस्था के बहाने लोगों के विवेक को कुंद किया गया है। क्या कारण है कि हरीश रावत उड़कर सीधे थंगाड पहुंचते है, क्या उन्हे मुख्य मंत्री इसके लिए बनाया गया था कि वो जनता के पैसो ,से तीरथ यात्रा करे? क्या वो एक बार भी जौनसार के जन सरोकारों से जुड़ी किसी योजना के लोकार्पण के लिए लिए वहाँ गये? कोई जनता दरबार लगाया? हाल के दिनों वर्तमान मुख्य मंत्री बुल्हाड़ हो आए। क्षेत्र से संबध रखने वाले सभी लोग यह बात भली तरह से जानते है कि उनकी इस यात्रा आस्था को लेकर थी जिसका जन सरोकारो से कोई लेना देना नही था। जब उनका उड़नखटोला बुल्हाड़ के हेलीपेड में उतर रहा था उसी वक्त नदी के दूसरी तरफ ठीक सामने एक बस दुर्धटनाग्रस्त हो जाती है। बुल्हाड से दुर्धटना स्थल तक पैदल जाने में मात्र एक घंटे का समय लग सकता था लेकिन मौके पर जाने की बजाय देवता की आड़ में जन भावनाओं को भुनाने के लिए आयोजित किए गये इस जलसे में शिरकत कर मुख्य मंत्री देहरादून लौट आते है। वे जानते हैं आस्था के चलते उनसे कोई सवाल नही करेगा। वे जानते है कि देवता परायण लोग कानून व्यवस्था सड़कों और सार्वजनिक परिवहन की दुर्दशा पर सवाल उठाने की बजाय भगवान को साक्षी मानकर मृतकों की आत्मा के लिए शांति की प्रार्थना करेंगे। जनवाद के जोर पर जनता में पैंठ बनाने वाले मुन्ना चौहान भी उस दिन बुल्हाड के इस दैवीय जलसे में शामिल थे। पिछले साल जब सूबे में कांग्रेस की सरकार थी उस दौरान दारागाड़ मे हुई बस दुर्घटना के दौरान चौहान जी ने अपने समर्थकों के साथ त्यूनी के अस्पताल का घेराव किया था और तत्कालीन गृह मंत्री प्रीतम सिंहं से, जो वहाँ के विधायक भी है, नैतिकता के आधार पर इस्तिफा मांगा था लेकिन गुम्मा की दुर्घटना के बाद उन्होने चूँ तक नही की।
अब बात आस्था की करते है। क्या आपको नही लगता कि हमारी आस्था न्याय प्रिय होनी चाहिए? जिस सर्वशक्तिमान पर हमारी आस्था है क्या उसका न्याय भी यही है? क्या आस्था क्षेत्र में रोज रोज होने वाली दुर्धटनाओं का, जिसमें नीरिह लोग अपनी जान गंवाते है, समाधान है? अगर नही तो फिर उस आस्था का क्या करना जो केवल शोषण और डर का कारण बने। मुझे लगता अपनी आस्था को परखने का इससे बेहतर समय हो ही नही सकता। आखिर पता तो चले कि जौनसार बावर के देवता आम जन के लिए क्या कर सकते है। क्या हमारे आराध्य की कोई जवाबदेही नही होनी चाहिए? अगर वे किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत सफलता का श्रेय ले सकते हैं तो फिर आपदाओं और आकस्मिक दुर्धटनाओं की जिम्मेदारी किसकी होनी चाहिए? हो सकता है लोग मेरे नजरिए को साम्यवाद कह कर खारिज कर दें। हो सकता है लोग मेरे तर्कों से संतुष्ट न हो लेकिन मेरी बात को झुठला नही सकते।
सुभाष तारण
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