प्रतिष्ठा में,
श्रीमान मुख्य कलाल
उत्तराखंड
विषय: उत्तराखंड के युवाओं में मदिरा सेवन सम्बन्धी क्षमता विकास हेतु व्यावहारिक सुझाव एवं वैज्ञानिक पद्धति के आधार पर क्षमता विकास हेतु परियोजना प्रस्ताव
माननीय महोदय,
स्पष्ट करना चाहूँगा कि पत्र के मूल ड्राफ्ट में आपको ‘माननीय मुख्यमंत्री’ से सम्बोधित किया गया था किन्तु वरिष्ट उत्तराखंड राज्य आन्दोलनकारी श्री ठुमकु सकलानी जी के सुझाव के अनुसार आपको ‘श्रीमान मुख्य कलाल, उत्तराखंड राज्य’, के रूप में संबोधित करने पर सहमती बनी है. इस सन्दर्भ में राय यह बनी कि आपके प्रचंड बहुमत वाली डब्बल इंजिन युक्त सरकार को जब कलाली के पैसो से ही चलना है तो इस विषय पर आम जनता में कलाली के व्यवसाय के प्रति सम्मानजनक दृष्टिकोण को स्थापित किया जाना समय के अनुरूप ही है. अथ: उत्तराखंड राज्य के मुख्यमंत्री को उत्तराखंड के मुख्य कलाल के रूप में संबोधित किया जाना न केवल कलाली के पेशे को सम्मान प्रदान करेगा अपितु प्रदेश के उन लाखों पियक्कड़ों की जमात के हितों की भी रक्षा करेगा कि जिनके महान योगदान के कारण आपकी सरकारी मशीनरी का वेतन-भत्ता चल रहा है.
इस महत्वपूर्ण विषय पर आपके विचारार्थ निम्न सुझाव प्रस्तुत हैं. इस पत्र के साथ उत्तराखंड विज्ञानं एवं प्रोद्योगिकी परिषद् से समर्थन हेतु एक परियोजना प्रस्ताव भी इस आशय से संलग्न है कि आपकी संस्तुति के उपरांत इस प्रस्ताव को प्राथमिकता के आधार पर सहायता राशि मिलेगी.
1) यह तथ्य भलीभांति स्थापित हो चुका है कि शराब से प्राप्त होने वाले राजस्व के बिना राज्य सरकार का चलना असंभव है. यदि शराब इतनी ही महत्वपूर्ण है तो प्रदेश में शराबियों के हितों की रक्षा करने का दायित्व भी प्रदेश के मुख्य कलाल का बनता है. इस सन्दर्भ में निवेदन इस प्रकार से है.
अ) प्रदेश में खण्ड विकास स्तर पर मदिरा सेवन की प्रतियोगिताएं की स्वस्थ परंपरा को आरम्भ किया जाये. राज्य स्तर पर सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने वालों को राज भवन से सम्मानित किया जाये.
आ) प्रधानमंत्री श्री मोदी जी के डिजिटल इंडिया के सपनो को पूरा करने हेतु शराब की दुकानों में केवल ई-पेमेंट की व्यवस्था की जाय. इसके द्वारा शराब के खुदरा व्यापारी उपभोक्ताओं से अनर्गल वसूली नहीं कर पाएंगे. चूँकि समस्त बैंक खाते अब आधार से जुड़े हैं अथ: अत्यधिक सेवन करने वालों को चिन्हित करना एवं उन्हें सम्मानित करना अपेक्षाकृत सरल होगा.
इ) निर्धारित सीमा, जो कि विशेषज्ञों द्वारा तय की जाएगी, से अधिक मदिरा सेवन करने वालों को चिन्हित करके सरकारी वाहनों में मुफ्त यात्रा का पास प्रदान किये जाने की लोकप्रिय नीति को विधानसभा से पारित करवाने की नितांत आवश्यकता है. यह विधेयक प्रचंड बहुमत से पारित हो जायेगा क्यूंकि दूसरी तरफ भी डेनिस के जन्मदाता जो बैठे हैं. महोदय खुल्ले व्यापार में खरीददार के लिए ‘Patron’ अर्थात संरक्षक शब्द का चलन है. वर्तमान स्तिथि में प्रदेश के लाखों शराबी आपकी सरकार के सच्चे संरक्षक ही तो हैं. अपनी सरकार को सुरक्षित रखने हेतु अपने संरक्षकों के हितों की रक्षा करना ही सही राजधर्म है. घाटे में चल रही आपकी परिवहन सेवाओं का खर्चा पानी भी तो शराब की कलाली से ही निकलेगा. अथ: संरक्षकों को मुफ्त यात्रा पास दिया जाना पूर्णत: न्यायोचित होगा. चिन्हित संरक्षकों हेतु निशुल्क स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान किया जाना भी राज्य के पक्ष में होगा. छोटी-मोटी बीमारी से अकसर स्वर्ग सिधार जाने वाले संरक्षकों को यदि कुछ और अवधि के लिये आपकी देवभूमि में रोका जा सके तो राज्य की आय को सतत बनाने की दिशा सुनिश्चित होगी.
2) महोदय अपने ज़माने की हिट फिल्म ‘मुगलेआजम’ का एक आल टाइम हिट गाना है ‘जब प्यार किया तो डरना क्या’. यह मुखड़ा आप के कलाली के व्यवसाय के सन्दर्भ में प्रासंगिक प्रतीत हो रहा है. इसी से प्रेरणा लेते हुए विनम्र निवेदन करना चाहूँगा कि इस प्रेम को वक़्त की जंजीरों में जकड़ना आप को शोभा नहीं देता. कहीं ठेके साडे छे बजे बंद तो कहीं नों बजे, तोड़ डालिए वक़्त की इन जंजीरों को और दिखा दीजिएये ज़माने को अपना प्रेम यही गुनगुनाते हुए कि जब प्यार किया तो डरना क्या’.
3) महोदय, मैंने शराब के पक्ष में आपका साक्षात्कार पढ़ा है और उससे पूर्णत; सहमत भी हूँ किन्तु विवाद इस बात का नहीं कि पूर्ण शराबबंदी सफल होती है या नहीं अपितु इस बात पर है कि सरकार की शराब के प्रति इतनी दिलचस्पी क्यूँ है. बाकि पूर्ण शराबबंदी की ही तरह सरकार की अधिकांश योजनायें फेल हैं उन पर आपका ध्यान लगभग नहीं ही गया है. (और यदि सत्य कहूँ तो उत्तराखंड राज्य ही फेल है). जब जिलाधिकारी अपने इलाके में शराब से प्राप्त होने वाले राजस्व पर चिंतन करने लगें तो इसका महत्त्व समझ में आने लगता है.अब राका को तो आप जानते ही होंगे, वो डेनिस से पहले वाले मुख्यमंत्री के शासनकाल में पोंटी भाई के दरबार में हाजरी लगाने गया था. पोंटी भाई की सफलता की कहानी, कलाली की सब से बड़ी सक्सेस स्टोरी में गिनी जाती है. ऐसे में जहाँ सरकार खुद ही कलाली करने लगी है तो उत्तराखंड राज्य के सुनहरे भविष्य का आगाज तो तय समझा जाना चाहिए. विनम्र आग्रह इतना है कि मसूरी स्तिथ लाल बहादुर शास्त्री प्रशासनिक आकादमी के पाठ्यक्रम में इसे विधिवत दर्ज करवाने की संस्तुति करेंगे ताकि नौकरशाह अपनी तैनाती के समय कलाली हेतु पूर्णत: सक्षम रहें. इस प्रकार पूरे भारतवर्ष को कलालों के हाथों संचालित करने का मार्ग प्रशस्त हो जायेगा और इतिहास में आपका नाम स्वर्णिम अक्षरों में!
4) महोदय आपको प्राप्त प्रचण्ड बहुमत की पृष्ठभूमि में मेरे अन्तर्रह्रदय में कुछ शंकाएं सर उठाने लगी हैं. मुददा यह है की अब उत्तराखंड के पूर्ण भगवाकरण को रजनीकांत भी नहीं रोक सकता. अब बचे खुचे गांवों में शाखा लगेगी, ‘सदा वत्सले मात्रभूमि गूंजेगा’. अब भगवाकरण की फसल, कटने के बाद आर.एस.एस. के गोदाम में ही तो जमा होगी. जहाँ तक मेरी जानकारी में है तो आर.एस.एस. वाले तो दारू नहीं पीते, जैसे की आप भी नहीं पीते. अब अगर कुछ पीते भी होंगे तो छुप-छुप्पा कर एक-दो पैग में पूरे हाफ का मज़ा सूत लेते होंगे. कालांतर में पूरे प्रदेश का युवा यदि आर.एस.एस. की झोली में चला गया तो फिर आपकी कलाली चलेगी कैसे ? क्योंकि आर.एस.एस. वाले दारू पियेंगे नहीं, और बिना पियक्कड़ों के आपकी सरकार वेतन कहाँ से बांटेगी ? यह सही है कि कांग्रेस मुक्त भारत के नारे की आड़ में आपकी पार्टी ने उत्तराखंड में कांग्रेस युक्त सरकार को जना है. फिलवक्त इनके सहारे कुछ वक़्त आपकी दुकान चलती रहेगी किन्तु आपकी पार्टी इनको ठिकाने लगाने के बाद कलाली का धंदा कब तक और कैसे चला पायेगी. अब राजनीतिज्ञ तो गिद्धों से भी जयादा दूरदर्शी होते हैं, ऐसे में आप को इस विरोधाभास को निपटाने की दिशा में अभी से प्रयास आरम्भ कर देने चाहिए. इस सन्दर्भ में आपकी सरकार के हाथ मजबूत करने हेतु एक परियोजना प्रस्ताव संलग्न है. कृपया इसे पारित करने की संस्तुति के साथ उत्तराखंड विज्ञानं एवं प्रोद्योगिकी परिषद् को अग्रसारित करने की महान कृपा करेंगे.
जय भारत – जय उत्तराखंड
हर-हर महादेव !
भवदीय
डॉ. सुनील दत्त कैंथोला
ग्राम एवं पोस्ट पालकोट
जिला पौड़ी
उत्तराखंड
पुन्हशच: आपके संज्ञान में यह तथ्य भी लाना चाहूँगा कि कुछ भटके हुए वामपंथी एवं कथित उदारवादी तत्व कलाली के मुददे पर कुछ बड़ा टंटा करने का षड्यंत्र रच रहे हैं. उनका मानना है कि जब शराब इतनी ही महत्वपूर्ण है कि हवा, पानी और नमक की तरह जिन्दा रहने की आवश्यकताओं का हिस्सा है, तब उसके उत्पादन एवं विपणन पर सरकार का एकाधिकार क्यों ? ये निर्लज वामपंथी अब उसी गाँधी की आड़ लेकर नया बखेड़ा खड़ा करना चाहते हैं कि जिसको ये हमेशा से कोसते आये हैं. ये लोग अब दांडी मार्च जैसा ही कुछ करने की फ़िराक में हैं. गाँधी जी ने बरस 1930 में 24 दिन की पदयात्रा में 390 किलोमीटर की दूरी तय करके दांडी के तट पर नमक बनाया था. ये कथित देशद्रोही अब कुछ कुछ वैसा ही विधानसभा के बाहर करना चाह रहे हैं. हालाँकि ये इतनी कच्ची तो बना न पाएंगे कि कामरेडों का कोटा पूरा हो सके पर मिडिया कम्पीटीशन के इस दौर में ये अपना राजनितिक पुनर्जनम पाने का जुगाड़ पक्का कर सकते हैं. ये शराब विरोधी महिलाओं को भी अपने खेमे में लाने की तजबिज कर रहे हैं कि जब शराब घर घर बनेगी तो घर का पैसा घर में ही रहेगा और घरवाले का कहीं भ्याल (खड्ड) में लमड़ने (गिरने) का खतरा भी नहीं रहेगा बल! ये केन्द्रीयकृत व्यवस्था में विश्वास रखने वाले दरअसल इस आड़ में 2400 करोड़ के उस राजस्व को चोट पहुँचाने का षड्यंत्र रच रहे हैं जो आप अपने अथक प्रयासों से कलाली के द्वारा उगहाना चाहते हैं. संग्लन परियोजना प्रस्ताव में इस षड्यंत्र की काट भी शामिल है श्रीमान !
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परियोजना प्रस्ताव-संक्षिप्त परिचय
समक्ष
श्रीमान महानिदेशक
उत्तराखंड विज्ञानं एवं प्रोद्योगिकी परिषद्
विज्ञानं धाम
देहरादून, उत्तराखंड
परियोजना का शीर्षक:
उत्तराखंड के युवाओं में मदिरा सेवन को लोकप्रिय बनाने हेतु वैज्ञानिक पद्धति के आधार पर क्षमता विकास
परियोजना का सार संक्षेप:
वित्तीय संकट झेल रहे उत्तराखंड प्रदेश में मदिरा से होने वाली आय वस्तुत: एक ऐसा प्राणदायी स्रोत है कि जिसके बिना इस प्रदेश को सुचारू रूप से चलाया जाना संभव नहीं है. इस स्रोत को सतत एवं अक्षुण्ण बनाये रखने हेतु नवयुवकों को किशोरावस्था से ही मदिरा के गुणों एवं मदिरापान का राष्ट्र निर्माण से सम्बन्ध के बारे शिक्षित करते हुए वैज्ञानिक पद्धति के आधार पर उनका मदिरापान सम्बन्धी क्षमता विकास.
परियोजना के मुख्य उदेश्य:
1. ‘कैच दैम यंग’, के आधार पर प्रदेश के किशोरों एवं युवाओं को मदिरापान के स्वास्थवर्धक तरीको से अवगत करवाते हुए सरकारी कर्मचारियों को समय पर वेतन प्रदान करने हेतु कलाली के द्वारा राजस्व सुनिश्चित करना एवं राजस्व में सतत वृद्धि का मार्ग प्रशस्त करना.
2. मदिरा पान से सम्बंधित अन्य महत्वपूर्ण उत्पादों यथा सोडा, आइसक्यूब, तंदूरी चिकन व् शाकाहारी चोखा/स्नैक्स के सन्दर्भ में ज्ञान वर्धन.
3. मदिरा के विभिन्न ब्रांडों के तुलनात्मक स्वाद एवं प्रभाव का वास्तविक अनुभव प्रदान करवाना
4. अत्यधिक मदिरा सेवन के दुष्प्रभावों के पारंपरिक एवं आधुनिक उपचारी उपायों (remedial measures) से अवगत करवाते हुए प्रदेश की शांति व्यवस्था को सुद्रिड करना (यथा कुमांऊ का जगत प्रसिद्ध कुमांऊनी रायता)
5. मदिरा पान के ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक/धार्मिक महत्त्व की जानकारी प्रदान करना तथा इस आधार पर उन्हें धर्म के प्रति जागरूक करना.
6. मदिरापान को बढ़ावा देने हेतु स्वयं सहायता समूहों का गठन एवं आकस्मिक ऋण सुविधा की पायलट टेस्टिंग
7. वैज्ञानिक मदिरापान पद्धति से सम्बंधित प्रशिक्षण सामग्री का विकास एवं मास्टर ट्रेनर्स हेतु प्रशिक्षण
8. मदिरा सेवन से सम्बंधित भ्रांतियों को निर्मूल साबित करना, मदिरापान के पारंपरिक पेय यथा कच्ची, छंग, तुम्बा आदि को सूक्ष्म स्तर पर बढ़ावा देना ताकि वे कालांतर में कलाली को समृद्ध करने में भूमिका निभा सके
9. मदिरा सेवन करने वालों में आत्मगौरव की भावना का संचार करना
परियोजना में वैज्ञानिक कॉम्पोनेन्ट:
शिक्षण की आधुनिक तकनिकी का प्रयोग करते हुए यह सुनिश्चित किया जायेगा की प्रशिक्षण के दौरान बांटा जाने वाला ज्ञान मात्र रोट मेमोरी तक ही न सीमित रहे अपितु प्रशिक्षण में प्रस्तावित experiential learning के द्वारा long term memory का हिस्सा बन सके. प्रस्ताव में सैंपलिंग से लेकर प्रशिक्षण की अवधि एवं प्रवचन की अवधि व् मदिरा सेवन की मात्रा, समस्त कारक रिसर्च माडल के आधार पर बनाये गए हैं. सिक्किम तथा अन्य नेपाली बाहुल्य क्षेत्रों मैं लोकप्रिय मंडवे से बनने वाले तुम्बा पेय को सूक्ष्म स्तर पर प्रयोग एवं इस्तेमाल हो चुके मंडवे को दुधारू गायों के लिये पोष्टिक आहार के रूप में भी प्रयोग प्रस्तावित है. इसके द्वारा मंडवे में विद्यमान अल्कोहोल के अंश की गाय के दूध में भी आ जायेंगे. ऐसा दूध जब उत्तराखंड की भावी पीढी को नसीब होगा तो युवा होने पर उनकी मदिरा सेवन की क्षमता सामान्य से कहीं जाएदा हो जाएगी जो कि कलाली के धंदे को नयी उंचाईयों तक ले जाएगी. इसी के दम पर सरकारों का खर्चा-पानी चलता रहेगा.
मुख्यकार्ययोजना एवं बजट :
बौद्धिक सम्पत्ति अधिकार के रक्षार्थ, परियोजना का मुख्य प्रारूप, क्रियान्वयन रणनीति एवं बजट सीलबंद लिफाफे में परिषद् कार्यालय में जमा किया जा चुका है एवं रसीद प्राप्त कर ली गयी है.