अवनीश अग्निहोत्री 

कोटद्वार। एक ओर केंद्र सरकार आम आदमी को सस्ता इलाज देने के लिए जेनेटिक दवाइयों का अधिक से अधिक उपयोग करने के लिए कानून बनाने जा रही है, वहीं कोटद्वार में दवा कंपनियों के प्रलोभन में आकर सरकारी चिकित्सालय के चिकित्सक मंहगी दवाइयों को लिखकर आम आदमी की जेबों में अप्रत्यक्ष तौर पर डाका डलवा रहे हैं।
बताते चलें कि राजकीय संयुक्त चिकित्सालय अब बेस चिकित्सालय बनने की ओर अग्रसर है इसके लिए राज्य सरकार द्वारा चिकित्सालय की बिल्डिंग का जीणोद्धार के शुरूआत की गई, जिसके तहत चिकित्सालय में करोड़ों की लागत से दो बिल्डिंगों का निर्माण कार्य पूरा कराया जा चुका है, लेकिन अब भी सुविधाओं के नाम पर चिकित्सालय रेफर सेंटर बना हुआ है। थोड़ी बहुत जो चिकित्सा सुविधाएं मिल भी रही है, वह भी चिकित्सालय में तैनात चिकित्सकों के मेहरबानी से मंहगे दामों पर उपलब्ध हो रही है। दरअसल दवा कंपनियों द्वारा गिफ्ट व सैंपल देकर उनकी कंपनियों की मंहगी दवाइयां लेने की सलाह दी जाती है, जबकि उसी साल्ट की अन्य कंपनियों की सस्ती दवाइयां मेडिकल स्टोर में मौजूद रहती है, इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि दवा कंपनियों व चिकित्सकों की मिलीभगत से किस तरह उपचार के नाम पर आम आदमी की जेब पर डाका डाला जा रहा है। या यूं कह सकते हैं कि जेनेटिक दवाइयां आम आदमी के उपचार के लिए उपयोग में लाई ही नहीं जाती हैं। इस तरह सरकार के सस्ते उपचार मुहैया कराने की योजना पर चिकित्सक पलीता लगा रहे हैं। यहां यह भी बताते चलें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सार्वजनिक मंचों पर आम आदमी को उपचार के दौरान जेनेटिक दवाइयों के उपयोग पर ही जोर देते आ रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद भी चिकित्सक दवा कंपनियों की मंहगी दवाइयां मरीजों के लिए लिख रहे हैं।

डॉक्टर चैक व कार्ड से बिल भुगतान नहीं करते स्वीकार, आयकर चोरी के लग रहे है आरोप

सार्वजनिक संस्थाओं की ओर से गरीब तबके के लोगों को असाध्य रोगों के उपचार के लिए आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जा रही है। लेकिन सरकारी व गैर सरकारी चिकित्सालयों के अड़ियल रवैये के चलते गरीब लोगों को इलाज के लिए आर्थिक मद्द नहीं मिल पा रही है। दरअसल संस्थाओं द्वारा लाभार्थी को उपचार के लिए आर्थिक सहायता चैक द्वारा दिया जाता है। जो लाभार्थी के नाम पर न होकर सीधे चिकित्सालय के नाम पर बनाया जाता है। और इससे पूर्व लाभार्थी द्वारा जिस चिकित्सालय में उपचार कराया जाना है, उस चिकित्सालय से इलाज खर्च का इस्टीमेट मांगा जाता है, लेकिन सरकारी व गैर सरकारी चिकित्सालय इलाज खर्च का इस्टीमेट या उपचार का बिल देने में आना कानी कर रहे हैं, जिससे गरीब लोगों को गैर सरकारी संस्थाओं से आर्थिक मद्द मिलने में दिक्कतें आ रही हैं। गैर सरकारी चिकित्सालय तो नगदी के अलावा किसी तरह के भुगतान को स्वीकार ही नहीं करते, दरअसल चिकित्सालय आयकर से बचने के लिए इस तरह का हथकंडा अपनाते हैं।

सीएमएस कोटद्वार घर पर कर रहे प्राइवेट प्रैक्टिस, बाकियों पर कौन लगाएगा लगाम

सूबे के राजकीय चिकित्सालयों में तैनात चिकित्सकों के प्राइवेट प्रैक्टिस पर रोक लगी हुई है, लेकिन बावजूद इसके बावजूद भी राजकीय संयुक्त चिकित्सालय में तैनात चिकित्सकों पर सरकारी फरमान का कोई असर नजर नहीं आ रहा है, जहां चिकित्सक चिकित्सालय में मरीजों को देखने को तैयार नहीं हैं और जरा सी बीमारी होने पर ही मरीज को रेफर कर देते हैं, वहीं चिकित्सक प्राइवेट प्रैक्टिस जोर-शोर से करते नजर आते हैं। चिकित्सालय के सीएमएस और बाल रोग विशेषज्ञ आईएस सामंत स्वयं प्राइवेट प्रैक्टिस करते नजर आते हैं। घर पर देखने के लिए सीएमएस मोटी फीस वसूल रहे हैं, ऐसे में चिकित्सालय के अन्य चिकित्सकों के लिए क्या कहा जा सकता है।

आरटीआई में नही दी जा रही है पूर्ण जानकारी
शहर व आस-पास के क्षेत्रों में चल रहे प्राइवेट क्लीनिकों, नर्सिंग होम, मेडिकल स्टोर, प्राइवेट रिटेल, पैथोलाजी लैब के संबंध में स्वास्थ्य विभाग से सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत सूचना मांगे जाने पर विभाग की ओर से उपलब्ध कराई गई सूचना से स्पष्ट है कि विभाग वास्तव में क्षेत्र के लोगों के स्वास्थ्य के प्रति कितना संजीदा है। विभाग की ओर से जो सूचना उपलब्ध कराई गई, उनमें चंद बड़े नर्सिंग होमों के संबंध में वो भी आधी-अधूरी सूचना उपलब्ध कराई गई है। शहर व आस-पास के क्षेत्रों में संचालित हो रहे छोटे क्लीनिकों, मेडिकल स्टोर, व पैथोलाॅजी लैब की जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई है। विभाग की ओर से दी गई सूचना से लगता है कि ये क्लीनिक या तो मानक पूरे नहीं करते है और विभाग इनसे अंजान है या फिर विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से ये क्लीनिक अवैध रूप से संचालित हो रहे हैं। चिकित्सा परिषद द्वारा चिकित्सा के लिए चिकित्सक को दिए जाने वाले लाइसेंस में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि आम आदमी को सस्ते से सस्ता उपचार मुहैया कराया जाए और इसके लिए जेनेटिक दवाइयों को मरीज के लिए लिखने पर भी जोर दिया जाता है। इसके लिए हालांकि चिकित्सक के खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही का प्रावधान अब तक नहीं था, और चिकित्सक के खिलाफ शिकायत मिलने पर केवल कुछ समय के लिए चिकित्सक का लाइसेंस निरस्त करने का अधिकार चिकित्सा परिषद को था, लेकिन यदि केंद्र सरकार जेनेटिक दवाइयों को लेकर कानून लेकर आती है तो चिकित्सक कानून के शिकंजे में आ जाएंगे।

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