कोटद्वार में राजस्व अधिकारियों की मिलीभगत से जमीनों की अवैध खरीद-फरोख्त लगातार जारी। सरकार बदल जाती है पर घोटाले नही बदलते

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अवनीश अग्निहोत्री (कोटद्वार) पौड़ी जनपद के कोटद्वार नगर में राजस्व अधिकारियों की मिलीभगत से अनुसूचित जनजाति (बोक्सा) की भूमियों की अवैध खरीद फरोख्त जोरों पर है।

जिलाधिकारी गढ़वाल की जांच आख्या के एक साल बाद भी उत्तराखण्ड राजस्व परिषद के अधिकारी कार्यवाही को दबाकर बैठे हैं।वह अधिकारी जो कि इस मामले को बहुत संगीन बता रहे थे और इस वजह से जांच हेतु कोटद्वार तहसील में भी आए थे, आज जांच दबा कर बैठे हुए हैं। दरअसल तहसील कोटद्वार में अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति की एक ही दिन में तीन तीन बीघा यानी कुल छह बीघा भूमि को अकृषिक घोषित कर दिया गया और उसके बाद धारा 143 की अपील जो कि जिलाधिकारी के समक्ष की जाती है जिलाधिकारी के समक्ष ना करके उपायुक्त गढ़वाल के समक्ष की गई। जबकि उपायुक्त गढ़वाल को उक्त धारा 143 की अपील सुनने का अधिकार प्राप्त नहीं है । और अगर उपायुक्त धारा 143 के खिलाफ की गई किसी अपील को सुन भी ले तो भी उसे जिलाधिकारी के अधिकारों की विशेषकर अनुसूचित जनजाति के संबंध में किसी भी प्रकार का कोई आदेश जो कि अधिकारों का हनन करता हो अनुमति नहीं है।

उसके बावजूद उपायुक्त गढ़वाल ने अपील का निस्तारण करते हुए यह कह दिया कि क्योंकि भूमि अकर्षित घोषित हो चुकी है, इसलिए अब इसके सामान्य व्यक्ति को बेचने पर जिलाधिकारी की अनुमति की कोई जरूरत नहीं है। गौर तलब है कि ऐसा ही एक मामला पिथौरागढ़ जिले का सामने आया था , जिस पर उत्तराखण्ड के एडिशनल कमिश्नर रिवेन्यू के द्वारा सुप्रीम कोर्ट में अपील फाइल की गई थी जो कि सिविल अपील संख्या 7346 ऑफ 2010, एडिशनल कमिश्नर उत्तराखण्ड आदि एवं अखलाक हुसैन आदि में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा 03 मार्च 2020 को एडिशनल कमिश्नर उत्तराखंड की अपील स्वीकार करते हुए स्पष्ट कह दिया कि भूमि का प्रकार बदलाव हो जाने के बावजूद अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को जिलाधिकारी की अनुमति के बिना भूमि को बेचने का कोई अधिकार नहीं है । आदेश में कहा गया कि Section 157-B imposes a complete bar on the right of a bhumidhar or asami belonging to the Scheduled Tribe to transfer their land by way of sale, gift, mortgage or otherwise to a person not belonging to the Scheduled Tribe.उसके बावजूद उपायुक्त गढ़वाल द्वारा माननीय उच्चतम न्यायालय के स्पष्ट आदेशों की भी अवहेलना करते हुए भू माफियाओं के पक्ष में निर्णय लिया गया और जिलाधिकारी गढ़वाल की उक्त मामले में 11 मार्च 2022 को स्पष्ट जांच आख्या राजस्व परिषद के आयुक्त एवम् सचिव को प्रेषित कर दिए जाने के बाद भी अभी तक राजस्व परिषद के अधिकारी जांच को दबा कर बैठे हुए हैं।

ऐसे में अनुसूचित जनजाति की भूमियों को खुर्द बुर्द करने में अधिकारियों की महत्वपूर्ण भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है।

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