उत्तराखंड और GST?

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Satyendra Hemanti
क्या GST में ‘विशेष राज्य’ का अर्थ उन राज्यों से केंद्र सरकार के हित में ज्यादा कर की वसूली है ?
आखिर कोई ‘विशेष राज्य’ होने का उत्तराखंड या यहां के नागरिकों को होने वाला एक फायदा गिना दे।

नुकसान ये हैं
1- यहाँ के नागरिकों को ऐसे डीलरों को भी सेंट्रल GST का भुगतान करना होगा जो 10 लाख से 20 लाख की टर्न ओवर की सीमा में हैं। जबकि उसी सीमा में अन्य राज्यों के नागरिकों को केंद्र को ऐसा कोई कर नहीं देना होगा।

2- राज्य का GST जो 10 से 20 लाख तक की बिक्री करने वाले व्यापारियों द्वारा जनता से वसूला जाएगा उसकी भरपाई केंद्र नहीं करेगा जबकि अन्य राज्यों में इसकी भरपाई केंद्र करेगा। हो सकता है जिसकी भरपाई गुजरात या महाराष्ट्र सरकार को की जाएगी वो केंद्र ने उत्तराखंड से वसूला हो।

3- उत्तराखंड के छोटे निर्माता व्यापारियों, ढाबे वाले, गैराज वाले, ठेकेदार, होटल वाले, रेस्टोरेंट वाले या अन्य सेवा प्रदाता की लागत बढ़ जाएगी। इन सभी को GST में सेवा प्रदाता कहा गया है। इससे इनके व्यवसाय पर नकारात्मक असर हो सकता है।

4- अन्य राज्यों की सीमा से सटे ऐसे सेवा प्रदाताओं की तुलना में दूसरे राज्य में वस्तु या सेवा सस्ती होगी फलस्वरूप ग्राहक देहरादून, रुड़की, कोटद्वार, ऋषिकेश, हरिद्वार के बजाय सहारनपुर, नजीबाबाद या मेरठ से सीधे सामान खरीदेगा। इससे उत्तराखण्ड को राज्य का GST तक नहीं मिल पायेगा।

5- छोटे निर्माता या सेवा प्रदाता के रोजगार पर बुरा असर होगा फलस्वरूप पलायन बढ़ेगा और दूसरे राज्यों को होने वाला निर्यात भी मँहगा पड़ेगा।

GST के अन्न्यायपूर्ण प्रावधान: – कृपया पूरा पढ़ें और अपनी राय दें
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जैसा कि आप सभी जानते हैं कि 01 जुलाई 2017 से GST लागू हो जाएगा. इसके लिए केन्द्रीय GST व राज्य GST कानून पारित किये जा चुके हैं. GST (वस्तु एवं सेवा कर) पूरे देश में एक जैसी कर व्यवस्था लागू करने के लिए लाया गया है. कई मायनों में ये एक अभूतपूर्व कर सुधार है. जिसमें कर ढांचे में पारदर्शिता आएगी और देश का राजस्व बढ़ने का अनुमान है. इससे व्यापार करने वाले डीलरों व सेवा प्रदाताओं को भी आसानी होगी क्योंकि अब कुल मिलाकर 15 विभिन्न अप्रत्यक्ष कर कानूनों को GST में समाहित कर दिया गया है. GST से विभिन्न कानूनों के अन्तर्गत कर पर पुनः लगने वाले कर को भी समाप्त किया जा सकेगा. अभी तक एक कर कानून के अन्तर्गत लगने वाले कर का लाभ दूसरे कर कानून में नहीं मिल पाता था इस प्रकार से GST के अन्तर्गत टैक्स के कैस्केडिंग इफ़ेक्ट को भी ख़त्म किया जा सकेगा.
GST कानून में छोटे डीलरों के हितों का ध्यान रखते हुए बीस लाख तक के राज्य स्तर पर कारोबार करने वाले डीलरों को पंजीयन लेने से छूट प्रदान की गयी है. इस प्रकार 20 लाख तक का कारोबारी GST के प्रावधानों से मुक्त रहेगा.
इस बीस लाख की सीमा का विरोध करते हुए कई राज्यों ने इस सीमा को घटाने के लिए दबाव डाला. इस वजह से संविधान में अनुच्छेद 279A के 4(g) में कुछ राज्यों के लिए विशेष प्रावधान करने की संस्तुति का अधिकार GST काउंसिल को दिया गया.
कौन कौन से राज्य हैं ये ?
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अरुणाचल प्रदेश, असम, जम्मू एवं कश्मीर, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड.
GST काउंसिल ने इन राज्यों के लिए कर मुक्त टर्नओवर की राशि 20 लाख से घटाकर 10 लाख रखने का प्रस्ताव किया. जिसे स्वीकार करते हुए केन्द्रीय GST कानून की धारा 22(1) में एक proviso (परंतुक) जोड़ दिया गया कि उक्त राज्यों के लिए कर मुक्त राशि 20 लाख के बजाय 10 लाख होगी.
क्या था राज्यों का तर्क ?
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राज्यों का तर्क था कि ये राज्य अल्प विकसित हैं. इनके राजस्व के साधन कम हैं. व इनके अधिकांश टैक्स डीलर छोटे हैं. यदि कर मुक्त टर्नओवर की धनराशि 20 लाख रखी जाएगी तो बड़ी संख्या में इनके डीलर कर के दायरे से बाहर हो जायेंगे.
क्या है समस्या ?
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CGST कानून की धारा 22(1) का परंतुक (proviso) जो इन राज्यों के डीलरों के लिए 10 लाख के छूट की सीमा निर्धारित करता है संविधान के अनुच्छेद 14 यानि ‘समानता के अधिकार’ का उल्लंघन करता है. किसी केन्द्रीय कानून में दो व्यक्तियों के लिए अलग अलग कानून की व्यवस्था नहीं की जा सकती.
अनुच्छेद 14 के विपरीत सिर्फ उस स्थिति में जाया जा सकता है जब सरकार को आर्थिक, सामाजिक, क्षेत्रीय असमानता मिटाने के लिए व्यक्तिगत समानता के अधिकार को सीमित करना पड़े.
संविधान के मूल ढांचे के विरुद्ध कोई बदलाव नहीं किया जा सकता.
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माननीय उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने ‘केशवानंद भारती बनाम केरल सरकार’ के मामले में निर्णय दिया कि संविधान के मूल ढांचे में बदलाव नहीं किया जा सकता. इस प्रकार का कोई संविधान संशोधन उच्चतम न्यायालय द्वारा शून्य घोषित किया जा सकता है.
तो क्या अनुच्छेद 279A के 4(g) में विशेष राज्य सम्बन्धी प्रावधान से कोई समस्या है ?
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नहीं, क्योंकि विशेष राज्यों के हित में GST काउंसिल की कोई संस्तुति उचित और संविधान सम्मत है. च्यूंकि उक्त सभी विशेष राज्य औद्योगिक रूप से अति पिछड़े हैं, पलायन व रोजगार की समस्या से जूझ रहे हैं. इन राज्यों में मूलभूत इंफ्रास्ट्रक्चर भी उपलब्ध नहीं है अतः क्षेत्रीय असमानता के मध्यनजर कोई भी संस्तुति इन राज्यों के हितों के विपरीत करना संविधान के मूलभूत ढांचे के बाहर ही समझा जा सकता है.
आखिर कर मुक्त टर्नओवर की सीमा कम करने से इन राज्यों को फायदा है या नुकसान ?
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GST के अन्तर्गत दो कर की व्यवस्था है एक केन्द्रीय कर (CGST) व दूसरा राज्य का कर (SGST). केंद्र का कर केंद्र सरकार को मिलेगा व राज्य का कर राज्य सरकार को.
कोई भी राज्य अगर कर मुक्त टर्नओवर की सीमा कम करेगा तो उस राज्य का राजस्व बढ़ना स्वाभाविक है. पर इसके साथ साथ 10 लाख से 20 लाख की सीमा में आने वाले डीलर्स पर केंद्र सरकार को भी अतरिक्त कर मिलेगा जो इन राज्यों की जनता से वसूला जायेगा. इन राज्यों के इतर दूसरे राज्यों में जनता केंद्र को ये कर नहीं दे रही होगी पर विशेष राज्यों की जनता पर ये अतरिक्त कर लगेगा. जो कि समानता के अधिकार का खुला उल्लंघन होगा. एक ही केन्द्रीय कर के तहत कमजोर राज्यों की जनता से अधिक कर वसूल करना संविधान में वर्णित सोशलिस्ट स्टेट की भावना के विरूद्ध है. याद रहे माननीय उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ सोशलिस्ट स्टेट को संविधान का मूल ढांचे का अंग मान चुका है.
तो क्या राज्य को 10 लाख से 20 लाख की टर्नओवर पर मिलने वाला कर राज्य के फायदे के लिए है ?
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उत्तर है नहीं. क्योंकि GST COMPENSATION TO STATES ACT 2017 पार्लियामेंट द्वारा पास किया जा चुका है. जिसके अनुसार यदि GST लागू करने के कारण राज्यों की राजस्व दर में कोई कमी आती है तो केंद्र इसकी भरपाई करेगा.
ऐसे में केंद्र विकसित राज्यों को 10 लाख से 20 लाख तक की टर्नओवर पर होने वाले कर के नुकसान की भरपाई तो करेगा पर इन अल्पविकसित राज्यों को नहीं. इन विशेष राज्यों की जनता से ही इस कर की वसूली की जाएगी. इस प्रकार जनता से वसूल किया गया ये कर केंद्र की क्षतिपूर्ति सम्बन्धी जिम्मेदारियों को कम करेगा.
तो कुल मिलाकर टर्नओवर सीमा घटाने का प्रस्ताव राज्य हित में न होकर पूर्ण रूप से केंद्र के हित में है. केंद्र द्वारा कमजोर राज्यों पर अधिक कर लगाने की नीति संविधान सम्मत नहीं बल्कि इसकी मूल भवना के विरूद्ध है.
ऐसे में क्या करें ?
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इसके विदूध माननीय उच्च न्यायालय में आर्टिकल 226 व सुप्रीम कोर्ट में आर्टिकल 32 के तहत रिट दाखिल की जा सकती है.
रिट के लिए क्या जरूरी ?
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कोर्ट ‘व्यक्तिगत रिट’ के बजाय ‘पीड़ित व्यक्तियों के संगठन’ की बात को ज्यादा वजन देता है. तो जरूरी है कि इसके विरूद्ध संगठित हो कर लड़ा जाय.
न्याय सामान्य सोच से कहीं मंहगा
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देश में न्याय पाने के लिए धन की दरकार है. बिना धन अच्छी लीगल सर्विसेज की मदद लेना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. वैसे आसान तरीका राजनीतिक है. यदि राजनेता जनता की बात को मजबूती के साथ केंद्र व GST काउंसिल के सामने रखें तो इस अन्याय से छुटकारा पाया जा सकता है.
क्या करेंगे हमारे नेता इसमें मदद ?

Source Association of small service provider

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