पंडित वैभवनाथ शर्मा- श्री काशी विश्वनाथ
वाराणसी की एक तंग गली में एक ब्राह्मण बीमारी की अवस्था में शय्या पर पड़ा था। युवा कबीर गंगा स्नान के लिए जा रहे थे। ब्राह्मण की दशा देखकर उसके पास पहुंचे।
उन्होंने कहा- ‘मेरे लायक कोई सेवा हो तो जरूर बताइगा।’
तब ब्राह्मण ने कहा- ‘बेटा! मेरा अंत समीप है। मैं अकेला हूँ। जीवन के अंतिम समय में थोड़ा गंगा जल पीना चाहता हूँ। तुम गंगा स्नान के लिए जा रहे हो, तो थोड़ा सा गंगा जल लेते आना।‘
कबीर यह सुनकर जल्द ही गंगा नदी के किनारे पहुंचे। स्नान किया और लोटे में गंगा जल लेकर वहां पहुंचे। और उन्होंने आग्रह किया- ‘लीजिए पंडित जी गंगा जल, इसे पी लीजिए।‘
तब बीमार ब्राह्मण ने कहा- ‘अरे बेटा! तुम तो अपने लोटे में ही गंगा जल ले आए। क्योंकि तुम मुसलमान जुलाहे के बेटे हो। तुम्हारा यह जल पीकर तो मैं अपवित्र हो जाउंगा।‘
तब कबीर बोले- ‘माननीय पंडित जी! जब आपको गंगाजल पर इतनी श्रद्धा इतना विश्वास भी नहीं है कि वह एक लोटे को पवित्र कर सके तो फिर गंगाजल आपको मुक्ति नही दे पाएगा।’
यह सुनकर ब्राह्मण हतप्रभ रह गया, और बोला- ‘कबीर! तुम्हारे इन वाक्यों ने मेरे ज्ञान चक्षु खोल दिए हैं। अब तुम अपने हाथों से ही गंगाजल पिलाओ।‘
इस तरह कबीर के हाथ से गंगाजल पीकर ब्राह्मण ने प्राण त्याग दिए।
‘दोस्तों!! जैसा आपका विश्वास होगा, वैसा ही आपको फल प्राप्त होगा। क्युँकि फल तो कर्म और विचार के अधीन है न कि वस्तु या स्थान के।‘
“गंगा दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएँ..!!”
“हर-हर गंगे..!!”
जय जय श्री काशी विश्वनाथ…