पूरे देश को झकझोर कर देने वाले निर्भया कांड में सुप्रीम कोर्ट ने चारों दरिदों को फांसी की सजा बरकरार रखी। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि निर्भया के दोषी जीने लायक नहीं हैं।

16 दिसंबर 2012 की रात तकरीबन डेढ़ बजे जब निर्भया को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल पहुंचाया गया था। वहां सबसे पहले देहरादून के डॉ. विपुल कंडवाल ने निर्भया का इलाज किया था। विपुल कंडवाल इस वक्त दून अस्पताल में कार्यरत हैं। लेकिन, उन दिनों वे सफदरजंग अस्पताल में कार्य कर रहे थे।

आइए जानते हैं विपुल कंडवाल की जुबानी, एक निजी अखबार को दिए अपने इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि निर्भया की हालत देख वे अंदर से दहल गए थे। जिदंगी में पहले कभी ऐसा केस नहीं देखा था।

डा. कंडवाल कहते हैं, रात डेढ़ बजे का वक्त रहा होगा। मैं अस्पताल में नाइट ड्यूटी पर था। तभी रोज की तरह सायरन बजाती तेज रफ्तार एंबुलेंस अस्पताल की इमरजेंसी के बाहर आकर रुकी। तत्काल ही घायल को इमरजेंसी में इलाज के लिए पहुंचाया गया।

कंडवाल बताते हैं कि मेरे सामने 21 साल की एक युवती थी। उसके शरीर के फटे कपड़े हटाए, अंदर की जांच की तो दिल मानों थम सा गया। ऐसा केस मैंने अपनी जिदंगी में पहले कभी नहीं देखा। मन में सवाल बार-बार उठ रहा था कि कोई इतना क्रूर कैसे हो सकता है?

मैंने खून रोकने के लिए प्रारंभिक सर्जरी शुरू की। खून नहीं रुक रहा था। क्योंकि रॉड से किए गए जख्म इतने गहरे थे कि उसे बड़ी सर्जरी की जरूरत थी। आंत भी गहरी कटी हुई थी। मुझे नहीं पता था कि ये युवती कौन है। इतने में पुलिस और मीडिया के कई वाहन भी अस्पताल पहुंचने लगे।

डा. कंडवाल हालांकि इन यादों को शेयर नहीं करना चाहते। वे कहते हैं कि वे पल मेरे लिए बहुत ही इमोशनल हैं। हां अगर हम निर्भया की जान बचा पाते तो उसके साथ फोटो जरूर खिंचाता। उस रात ही नहीं दो-तीन हप्तों तक हम दिन-रात निर्भया की स्थिति ठीक करने में जुटे रहे।

उपचार के लिए विशेषज्ञ डाक्टरों का एक पैनल बनाया गया। इसमें मैं भी था। बाद में हालत बिगड़ने पर उसे हायर सेंटर रेफर किया गया, जहां से एयर एम्बुलेंस के जरिए सिंगापुर भी भेजा गया। लेकिन तमाम कोशिश के बावजूद निर्भया को बचाया नहीं जा सका।

एक साल सफदरजंग के बाद डा. कंडवाल मेदांता अस्पताल चले गए। अब पिछले दो वर्षों से डा. कंडवाल दून अस्पताल में कार्यरत हैं।

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