प्रिय भुल्ला,

 

आशा है तुम परदेश में परिवार सहित सकुशल एवं सानंद होंगे. हम भी यहाँ भगवती की कृपा से ठीक-ठीक जैसे ही हैं. पिछले साल की आपदा से तो धन्दा-पाणी चौपट ही हो रखा है. बीच में चुनाव का सीजन रहा तो थोडा खर्चा-पाणी उठ गया. किसी तरह अच्छे दिन की आस में दिन काट रहे हैं. अब पता नहीं अच्छे दिन कब आयेंगे ? बीच में तो टीवी वाले भी खूब हल्ला कर रहे थे कि बल अच्छे दिन आने वाले हैं पर अब उनके सुर भी बदल रहे हैं.

 

आशीष अजकाल ऋषिकेश में काम ढूँढ रहा है. फरवरी में तीन हज़ार लेकर गौचर गया था भर्ती होने, पर दौड़ में बाहर हो गया. तब से घर नहीं लौटा. घुंघतयाल जी जब बोट मांगने आये थे तब मैंने पुछा था कि फौज की भर्ती में दौड़ने का क्या मतबल? अरे उकाल चढ़ने का टेस्ट लो, फिर देखो ! भागेगा वो जो डरपोक होगा, अरे सामान बोकने का टेस्ट लो, पर हम गरीबों की कौन सुनता है.

 

अबकी बार कीड़ाजड़ी और सतुवा का सीजन भी हल्का ही रहा. बड़ी आस से इंतज़ार कर रहे थे कि चलो कीड़ाजड़ी से ही नय्या पार लगा लेंगे. नया टेन्ट और मैग्गी-बिस्कुट भी खरीद रखे थे. पर एक तो टैम पर बरखा ने धोखा दे दिया और अब कीड़ाजड़ी भी उतनी नहीं हो रही है जितनी पहले होती थी. गुसाईं जी कह रहे थे जब बीज ही नहीं बचेगा तो होगी कहां से. वो परमेश्वरी का जवाई रीखीधार से फिसल गया. छुट्टी लेकर कीड़ाजड़ी करने आया था. अब इन लोगों का घर से कोई नाता तो रहा नहीं, देहरादून में मकान बना लिया है. पर धन्य हो कीड़ाजड़ी का कि अब सबको घर याद आ रहा है. अभी चोबट्टा हस्पताल में है. सर पर सात टांके लगे हैं, पर बच जायेगा. उसको हम रातों-रात पीठ पर उठा कर हरेला मोड़ तक लाये थे. फिर 108 बुला ली थी. जब वापस रीखीधार गया तो वहां थार टेन्ट- राशन सब चपट कर गए थे. तो मैंने बोला की अब फंड फूंको ! शारी वालों ने तो कीड़ाजड़ी के चककर मै अपने दुधारु तक बुगयाल में हांक दिये, अब भुखे मरते है मिजान.

 

बाकी हमारी तल्ले खोला वालों से भी अनबन हो गयी है. पहले पंचैत कर के बोला की मालदारों के जीतू को परधान बनाते हैं, हम ने भी हाँ बोल दी और सुमेरु को बैठा दिया कि चलो बेरोजगार है, कुछ तो करेगा पर वो ऐन टैम पर पल्ले खोला वालों से पैसा खाकर बैठ गया. अब फिर पल्ले खोला वालों की चलेगी. सोच रहे थे कि इंदिरा आवास ही मिल जाता, पर !

 

मुझे अजकाल स्वामी जी के आश्रम में चौकीदारी का काम मिल गया है. वैसे काम कुछ भी नहीं है. सुबह शाम, एक चक्कर लगाना है बस. उनका मैनेजर भी भला आदमी है. वो जो टंकी के पास हमारी बीस नाली है उसे खरीदने की बात कर रहा था. टुन्नी को नौकरी भी देंगे बल! अब मेरे से मना नहीं हो पा रहा है.

 

माँ पुछेरे के पास गयी थी. वो पल्ले खोला के चंदू का लड़का मायाराम जो दस साल पहले घर के सारे जेवर लेकर चम्पत हो गया था, अब वापस घर आ गया है. बड़ी अच्छी गणत लगाता है. उसके पास कम्पूटर भी है. माँ पूछने गयी थी कि ऐसा हमारे साथ क्यों हो रहा है, हर काम में दिक्कत ही दिक्कत क्यों आ रही है और हमारे अच्छे दिन कब आयेंगे, तो मायाराम जी ने बताया की दोष लगा है. बल मैंने पिछली पूजा के टैम पूर्नाहोती में हवन सामग्री नहीं डाली. अब मैंने तो डाली थी पर वहां धुवां इतना था की सैद बाहर गिर गयी होगी. ये देवता भी जरा जरा सी बात पर नाराज़ हो जाते हैं. पर देवता तो देवता ठेहरे. अब दशमी के बगत घंडयाली रखवा रहे हैं. बड़ा खर्चा है. हो सके तो तुम कुछ भेज देना, शुभ कारज है. तुम्हे दिक्कत है तो मैं वो बीस नाली की बात कर लेता हूँ, वो भी शुभ कारज में ही जायेगी.

 

शेष अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखना.

 

गंभीर सिंह

प्रधान (भूतपूर्व)

ग्राम सभा सगवाड़ी, जिल्ला पौड़ी

Posted by Sunil Kainthola

चित्र स्थान व्  काल्पनिक है

 

 

Photography Kamal Joshi (Freelance Photo journalist KOtdwar )

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