लोहाघाट(चम्पावत)। चिकित्सा के आधुनिक युग में प्रसव के तौर तरीकों में भले ही आमूल-चूल परिवर्तन हो गया हो,किन्तु ग्रामीण अंचलों में आज भी प्रसव की प्राचीन पद्धति चली आ रही है। सड़क व स्वास्थ्य सुविधा से वंचित क्षेत्रों में गांव की दाई ही प्रसव कराती है। हालांकि उसे प्रसव का प्रशिक्षण नहीं मिला होता फिर भी वह आधुनिक प्रशिक्षित स्वास्थ्य कार्यकत्रियों की अपेक्षा कहीं अधिक सुरक्षित प्रसव कराती है जिससे उनके ऊपर आम जन मानस का विश्वास कायम है।
ग्रामीण क्षेत्रों में इस प्रकार की दाईयों की कमी नहीं है। गांव की बड़ी बूढ़ी दादी मां हर वक्त प्रसव के लिए उपलब्ध रहती हैं। इन दाईयों को प्रसव की प्रत्येक विधि का ज्ञान रहता है। कहीं-कहीं तो हर सुविधा सम्पन्न गांव के लोग भी इन्हीं दाईयों से प्रसव कराना बेहतर समझते है। भले ही इनको स्वास्थ्य विभाग द्वारा उपेक्षित किया जाता हो किन्तु गांव में इनका पूरा मान सम्मान किया जाता है। अब तक एक सौ से भी अधिक सफल प्रसव कराने वाली बाराकोट विकास खंड के गल्ला गांव ग्राम पंचायत में रहने वाली बची देवी पत्नी स्व. गुलाब सिंह का कहना है कि अस्पतालों में
भले ही सुरक्षित प्रसव किया जाता हो, किन्तु वहां गर्भवती महिला को परेशानियां भी ज्यादा झेलनी पड़ती है। इन दिनों प्रसव के दौरान स्वास्थ्य केन्द्रों में हो रही मौतों के प्रति वे काफी आक्रोशित है। उनका कहना है कि प्रसव एक जटिल व जोखिम भरी प्रक्रिया है, किन्तु इसमें सावधानी बरती जाय तो यह काम आसान हो जाता है। उनका कहना है कि यदि शासन प्रशासन घरेलू दाईयों को प्राथमिकता देकर इन्हे ही प्रशिक्षित कराये तो गांव की महिलाओं को अस्पतालों के चक्कर लगाने के बजाय घर में ही उनकी उचित देखभाल व सुरक्षित प्रसव कराया जा सकता है।
बची देवी प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग द्वारा घरेलू दाईयों के प्रति उपेक्षा से काफी आहत है। उन्होंने जिला प्रशासन पर आरोप लगाया है कि उसने कभी भी उस जैसी दाईयों के प्रति सहानुभूति नहीं दिखाई। इधर गल्लागांव, नौमाना, तड़ीगांव, कालाकोट, तड़ाग, झिरकुनी, कुण्डीमाहरा आदि एक दर्जन से अधिक गांवों के लोगों ने श्रीमती बची देवी के उत्कृष्ट प्रसव कार्य के लिए उन्हे पुरस्कृत करने की मांग की है, वहीं एएनएम गल्लागांव व प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र बाराकोट के प्रभारी द्वारा भी बची देवी को सम्मानित करने हेतु मुख्य चिकित्साधिकारी को अपनी संस्तुति भेजी है। परन्तु पिछले तीस वर्षो से दर्जनों गांवों में सफल दाई का कार्य करने वाली बची देवी फिलहाल उपेक्षित ही है।